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1.तैल
इसके पूर्व कई शासक हुए मगर वह राष्ट्रकुटो के सामंत थे। इनमे कीर्ति वर्मा तृतीय,तैल प्रथम,विक्रमा दित्य तृतिया,भीमराज,आय्यण प्रथम,तथा विक्रमा दित्य चतुर्थ के नाम मिलते है। नीलकुंड लेख से पता चकता है कि आय्यण ने राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण द्वितीय की कन्या से विवाह करके दहेज में में विपुल संपत्ति प्राप्त कर ली थी। इसके पुत्र विक्रमा दित्य चतुर्थ का विवाह कल्चुरी नरेश लक्ष्मण सेन की पुत्री बोन्था देवी के साथ हुआ था। और बोन्था देवी से ही तैल का जन्म हुआ। इसने 937-997ई.तक शासन किया। 1.राष्ट्र कूट कृष्ण तृतीय के उत्तराधिकारी खोटिट्ग तथा कर्क द्वितीय के समय राष्ट्रकुटो की शक्ति अत्यन्त निर्बल पड़ गई। तैलप ने इस अवसर का लाभ उठाया।.973-974 ई.में इसने राष्ट्र कूटो की राजधानी मान्य खेत पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में कर्क द्वितीय मारा गया और राष्ट्र कूट राज्य पर तैलप का अधिकार हो गया। 2.शिमोगा (वर्तमान कर्नाटक) जिले के सोराब तालुक के सामंत शांति वर्मा ने सर्व प्रथम तैलप की अधीनता स्वीकार की। इस से पहले वह राष्ट्रकूट नरेश कर्क द्वितीय का सामंत था। 3.राष्ट्र कूटो की चोलो से पुरानी शत्रुता थी परिणाम स्वरूप तैलक भी राष्ट्र कूटो के सामंत के रूप में चोलो से लड़ चुका था। 4. तैलक ने गंग सामंत पांचाल देव की युद्ध में हत्या कर दी थी। इस युद्ध में उसे भूतिग देव से सहायता मिली थी। प्रसन्न होकर तैलप ने उसे आहवमलल की उपाधि से सम्मानित किया।.2.सत्याश्रय
तैलप का पुत्र होने के साथ साथ उसी के समान साम्राज्यवादी शासक था। सर्व प्रथम इसने शिलाहार वंशी शासक अपराजित पर विजय हासिल की।. शिलाहार वंशी उत्तरी कोंकण में शासन करते थे। इसके उपरांत उसने गुर्जर नरेश चामुण्डाराज के राज्य पर विजय हासिल की। इन दो विजय उपरांत परमार शासक सिंधुराज ने सत्याश्रय को हराया। अपनी विजय उपरान्त सिंधुराज ने चालुक्य साम्राज्य के सभी क्षेत्रों को सत्याश्रय से पुनः अपने अधिकार में ले लिया।.1.चोल नरेश रजराज प्रथम "सत्याश्रय" का सबसे बड़ा शत्रु था। क्योंकि इसका प्रभाव वेंगी के चालुक्यो पर था। दरअसल वेंगी के चालुक्य इसके सामंत थे। जिसके परिणामस्वरूप सत्याश्रय ने 1006 में वेंगी पर हमला बोल दिया।.प्रारंभिक सफलता में ही उसने गंदूर जिले पर अपना अधिकार कर लिया। सत्याश्रय ने 997-1008 ई.तक शासन किया।3.विक्रमादित्य पंचम
यह सत्याश्रय का भतीजा था क्युकी सत्याश्रय को कोई पुत्र नहीं था। कैलोम लेख में उसे यशस्वी और दानी शासक बताया गया है। विक्रमादित्य पंचम ने लगभग 1008-1015ई. तक शासन किया।4.जय सिंह द्वितीय
यह विक्रमादित्य पंचम का भाई था। इसके समय काल में परमार शासक भोज ने चालुक्य साम्राज्य पर आक्रमण किया। और युद्ध में विजय हासिल की । राजा भोज ने लाट और कोंकण पर अपना अधिकार कर लिया। परन्तु कुछ समय के बाद जय सिंह द्वितीय ने इन क्षेत्रों को पुनः हासिल किया।1019 ई. चोल शासक विमल दित्य की मृत्यु के बाद उसकी रानी कुंदवै देवी से चोल शासक राजराज का जन्म हुआ। जिसके कारण वश उसके सौतेले भाई विष्णु वर्धन- विजया दित्य सप्तम के बीच शासन को लेकर संघर्ष होना प्रारम्भ हो गया। इनके ग्रह संघर्ष का लाभ उठा कर जय सिंह द्वितीय ने विजया दित्य की सहायता से वेंगी पर आक्रमण कर दिया। इनका सामना करने के लिए राजेंद्र चोल ने दो सेना टुकड़ियों को उत्तर में भेजा। इस युद्ध में चोलो की विजय हुई। इतिहास में यह युद्ध मस्की के युद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अतः इस प्रकार जयसिंह द्वितीय ने लगभग 1015-1043ई.तक शासन किया।5.सोमेश्वर प्रथम
यह जय सिंह द्वितीय का पुत्र था। अपने समय काल में इसने अपनी राजधानी मानुखेत को कल्याणी में स्थांतरित किया और वहां सुंदर भवनों का निर्माण करवाया। विल्हण के अनुसार उसने कल्याणी नगर को खूब सजाया जिसके परिणाम स्वरूप कल्याणी विश्व के सभी नगरों में श्रेष्ठ बन गया। उसकी विजयों का वर्णन नांदेड़ के लेख में मिला है। अभिलेखों की माने तो अंग,मगध,कलिंग के दुश्मन राजाओं की सोमेश्वर प्रथम ने हत्या कर दी थी।तथा इसने 1043-1068ई. तक राज्य संभाला।.सोमेश्वर प्रथम एक महान साम्राज्य निर्माता था। चोलो से पराजित होने के बाद भी उसकी साम्राज्य सीमा क्षति ग्रस्त नही हुई। उसने 25 वर्षो तक शासन किया,सोमेश्वर ने तुंगभद्रा नदी में डूब कर आत्महत्या की ये कवि बिल्हड़ का मानना था।.6.सोमेश्वर द्वितीय
यह सोमेश्वर प्रथम का पुत्र था। इसका छोटा भाई विक्रमादित्य VI आरंभ से ही बहुत प्रतिभाशाली था। चोल नरेश वीर राजेंद्र ने सोमेश्वर प्रथम के समय काल में आक्रमण कर दिया। जिसके उपरांत सोमेश्वर द्वितीय के छोटे भाई विक्रमादित्य VI ने कुछ सामंतो के साथ मिलकर चोल नरेश से संधि कर ली।.वीर राजेंद्र ने अपनी पुत्री का विवाह विक्रमादित्य VI से कर दिया तथा सोमेश्वर द्वितीय पर दबाव बनाकर उसे राज्य के दक्षिणी भाग का युवराज बना कर शासन करने का अधिकार दिला दिया।.अतः इस प्रकार चालुक्य वंश दो भागो में विभाजित हो गया।सोमेश्वर ने अपने भाई विक्रमादित्य से अपनी शक्ति मजबूत करने के लिए कुलो तुंग के साथ मैत्री संबंध स्थापित किया। और विक्रमादित्य पर आक्रमण कर दिया। युद्ध में विक्रमादित्य की विजय हुई और सोमेश्वर द्वितीय को बंदी बना लिया गया। सोमेश्वर को कारगार में डालने के बाद विक्रमादित्य ने स्वयं को सम्पूर्ण चालुक्य वंश का सम्राट घोषित किया। मगर चोल शासकों ने गंगवाड़ी प्रदेश छीन लिया। इस प्रकार सोमेश्वर द्वितीय ने लगभग 1068-1076ई. तक शासन किया।.7. विक्रमादित्य VI
यह सोमेश्वर प्रथम का कनिष्क का पुत्र(यानी दासी द्वारा उत्पन्न) था। बिल्हण के विवरण से पता चलता है कि यह सबसे योग्य पुत्र था। सोमेश्वर सर्वप्रथम इसे ही युवराज बनाना चाहते थे मगर सोमेश्वर द्वितीय के रहते यह संभव नही था। प्रारम्भ में यह गंग वाडी पर तथा बनवासी पर सामंत की हैसियत से शासन करता था मगर सोमेश्वर द्वितीय के आक्रमण के उपरान्त इसने अपनी सम्पूर्ण सत्ता स्थापित की। विक्रमा दित्य की कार्य कुशलता पर कई सारे टीवी प्रोग्राम भी बन चुके है। विक्रमादित्य ने अपने बाहुबल से सोमेश्वर द्वितीय से राजलक्ष्मी को ग्रहण किया। 1076ई.अपने राज्य रोहण के समय चालुक्य विक्रम संवत का प्रारम्भ किया। यह कल्याणी का महानतम शासक था इसने 50 वर्षो तक शासन किया। 1126 ई. में इसकी मृत्यु हो गई। लगभग 1076-1126ई.वर्षो तक शासन किया।.8.सोमेश्वर तृतीय
यह विक्रमादित्यVI का पुत्र था। सोमेश्वर तृतीय बहुत ही कमजोर शासक था। इसके समय काल में चोल शासक विक्रम ने वेंगी पर पुनः अधिकार कर लिया। 1133 ई.में गोदावरी नदी के तट पर चोल सेना ने सोमेश्वर तृतीय को हरा दिया। इस प्रकार होसल भी स्वतंत्र हो गया। उनके शासकों ने यानी विष्णु वर्धन ने वोलम्बवाडी,हंगल तथा बनवासी पर अधिकार कर लिया। सोमेश्वर तृतीय स्वयं बहुत बड़ा विद्वान था।.उसने मानसोल्लास नामक शिल्पशस्त्र जैसे प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की थी। सोमेश्वर तृतिया के बाद उसके दो पुत्र जगदेक मल्ल द्वितीय ने 1138 से 1151 ई.तक और तैलप तृतीया ने 1151 से 1156 ई.तक शासन किया। और विक्रम दित्य ने स्वयं 1126 से 1138 तक शासन किया।.9.जगदेकमल्ल द्वितीय
यह सोमेश्वर तृतिया का पुत्र था यह अपने समय का शक्ति शाली शासक था। इसने चित्तल दुर्ग लेख के अनुसार चोलो और होयसलो को जीता था तथा काफी समय तक होयसलो ने उसकी अधीनता स्वीकार की।.10.तैलप तृतीय
यह सोमेश्वर तृतिया का छोटा पुत्र एवं जगदेक मल्ल का छोटा भाई था। यह एक कमजोर शासक था । इसके समय काल में होयसल,कल्चुरी,यादव आदि सामंतो ने अपनी स्वाधीनता घोषित कर दी।.अनम कोड़ अभिलेख से पता चलता है कि काकतीय शासक प्रोल ने इसे हराकर बंदी बना लिया लेकिन बाद में दया दिखाकर उसे मुक्त कर दिया। अंत में कल्चुरी वंश के शासक बिज्जल ने कल्याणी पर अपना अधिकार कर लिया। तै लप ने लगभग 1151 से 1156 ई.तक शासन किया।.11.सोमेश्वर चतुर्थ
यह तैलप तृतिय का पुत्र था। इसने कल्याणी को पुनः जीता। कल्चुरी पर विजय हासिल करने के बाद इसने भुजल वीर की उपाधि धारण की। इसे कल्चुरी वंश का उन्मूलन करने वाला कहा गया है। चालुक्यों की प्रतिष्ठा स्थापित करने के बाद यह कुछ समय तक अपने साम्राज्य को सुरक्षित रखने में सफल रहा। लेकिन साम्राज्य में चतुर्भुजी ग्रह युद्ध होने के कारण वह अपने आप को संभाल न सका। उसके अधीन रहने वाले देव गिरी के यादवों ने उसे परास्त कर चालुक्य की राजधानी कल्याणी पर अपना अधिकार कर लिया। होय सल के बल्लाल द्वितीय ने चालुक्य के सेनापति ब्रह्मा को हरा कर दक्षिणी भाग पर अपना अधिकार कर लिया। सोमेश्वर ने भाग कर एक बनवासी के यांहा शरण ली। और इसका निधन भी वही हो गया। अंत इसका स्मपूर्ण शासन काल लगभग 1181 से 1189 ई. तक रहा।.
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