9b45ec62875741f6af1713a0dcce3009 Indian History: reveal the Past: भारत में मंदिरों का इतिहास

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रविवार, 22 जून 2025

भारत में मंदिरों का इतिहास

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प्रस्तावना

प्रस्तुत लेख में हम पूरे भारत वर्ष में पाये जाने वाले मंदिरों के बारे में चर्चा करेंगे तथा इसके साथ ही इससे सम्बधित महत्वपुर्ण तथ्यों के बारे में चर्चा करेंगे।. दोस्तों इस लेख में किसी मंदिर विशेष की चर्चा न करते हुए  सम्पूर्ण भारत में पाये जाने वाले मंदिरों के निर्माण के पिछे के मुख्य कारणों पर चर्चा कि गयी है। भारतीय मंदिरों की विशेषताओं को गहनता से अध्ययन करने के लिए हमने इन्हें दो भागों में विभाजित किया है। जैसे दक्षिण भारतीय मंदिर तथा उत्तर भारतीय मंदिर। भारत में बने मंदिरों के निर्माण में नागर शैली, द्राविड़ शैली, वैसर शैली का प्रयोग किया गया है। उत्तर भारत में पाये जाने वाले मंदिर में नागर शैली का प्रयोग किया गया है वहीं दक्षिण भारत में पाये जाने वाले मंदिर में द्राविड़ शैली का प्रयोग किया गया है।

मंदिरों के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य 

1.सबसे प्राचीन मंदिर का निर्माण वैसर शैली में हुआ है।
2.प्राचीन काल में मंदिर पूरे शहर या नगर का ईकोनामिक हब हुआ करते थे. यानी पहले मंदिर का निर्माण किया जाता था फिर उसके बाद उसके अगल- बगल शहर य नगरों को बसाया जाता था।
3.प्राचीन काल में दो पक्षों के बीच न्याय करने के लिए मंदिरों के साक्षी मानकर निर्णय लिया जाता था ताकि दो पक्ष बिना किसी भेद-भाव एवं बैर के एक साथ रह सकें। आपको जानकर हैरानी होगी की आज भी हमारी न्याय व्यवस्था सुलह कराने तथा समझौता कराने कि कोई अवधारणा नहीं है। भारतीय संविधान प्रक्रिया अपराध होने के बाद दण्ड निर्धारण का कार्य  करती है।
4.जिस प्रकार भवन निर्माण के लिए वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करना अनिवार्य है ठीक उसी प्रकार मंदिर निर्माण में चार पुरुषार्थ का होना अति आवश्यक है जिन्हें हम इस प्रकार जानते है 1 धर्म   2 अर्थ  3 काम  4 मोक्ष आदि।

मंदिरों का इतिहास

मंदिर निर्माण के इतिहास के बारे में जानने के लिए समय- समय पर हुयी खुदायी के दौरान मिलो साक्ष्यों का सहारा लिया गया है। वैज्ञानिकों ने वास्तु के आधार पर मंदिर निर्माण कार्य को 1500 - 1600 ईसा0 पूर्व का बताया है। वहीं शिल्पकला के मिले साक्ष्यों के आधार पर इसे लगभग 2100 ईसा पू0 का बताया है। वहीं खुदाई के दौरान मिले सिक्कों के आधार पर मंदिरों के निर्माण का कार्य 2500 ईसा पू0 आरम्भ हो गया था। वहीं महाभारत जैसे खण्ड काव्य के आधार पर मंदिर निर्माण का प्रारम्भिक समय 3500 ईसा पू0 का बताया गया है। महाभारत में मंदिर शब्द के स्थान पर देवालय शब्द का प्रयोग किया गया है ।

D N झां ने अपनी मंदिरों के ऊपर लिखी किताब में मूर्ति प्रभाव को दिखाया। उनके किताब के अनुसार समय -समय के साथ मूर्ति निर्माण में किए गए सुधारों से इसका अनुमान लगाया है कि वे कितनी प्राचीन हो सकती है। इसके अलावा ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर यह पता लगाया गया है कि वैदिक काल में मंदिरों का प्रचलन नहीं था। पहले ग्रंथों का निर्माण हुआ , उसके बाद मंदिरों का प्रचलन प्रारम्भ हुआ ।.

आर्य शास्त्रों के प्राचीन ग्रंथों में हमें देखने को मिलता है कि हर व्यक्ति विशेष को मंदिर जाने का अधिकार प्राप्त था। शूद्र लोगों तथा उनके मंदिर प्रवेश को वर्जित रखने जैसे तथ्य प्राचीन ग्रंथों में नहीं मिलते है।

कुछ समय बाद जब गौतम बुद्ध अथवा बौद्ध धर्म जब भारत आया तो उन्होंने मंदिरों का निर्माण तो नहीं किया ,मगर बुद्ध प्रतिमाओं को पहाड़ों पर उकेरना प्रारम्भ किया। उसके बाद से मंदिरों का निर्माण कार्य तेज़ी से प्रारम्भ हुआ। इसके बाद से सनातन धर्म ने बौद्ध धर्म को बहुत पीछे छोड़ दिया।.

आचार्य चाणाक्य की किताब अर्थ के चौथे संस्करण में हमें भवन निर्माण  के लेकर एक महत्वपूर्ण लाइन पढ़ने को मिलती है कि आंगन भले ही गोपनीय हो मगर अग्नि स्थान (मंदिर) सभी लोगों के लिए हमेशा खुला होना चाहिए । यानी यहां कोई भी आकर पुजा करने में सक्षम हो। हालाँकि साक्ष्यों के आधार पर मूर्ति के बारे में कोई चर्चा नहीं मिलती है, इसके स्थान पर यज्ञ वेदि ,अग्नि आदि की चर्चा मिलती है।

अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्य 

चित्तौड़गढ़ का हाथी बाडा मंदिर यहां ब्रह्मि लिपि में लिखा है कि ( पुज्यशीला प्रकारा नारायण ) जो कि A.S.I द्वारा अनुमानित किया गया है कि 22000 वर्ष पुराना है।
सिंधु घाटी सभ्यता में हमें 2200 ईसा0 पू0 का शिवलिंग प्राप्त हुआ है।.

मंदिर शब्द की उत्पत्ति
मंदिर शब्द का उल्लेख सर्वप्रथम दो ग्रंथों में मिलता है। 1. मानस उल्लास 2. समरांगण । इनसे पहले हमें मंदिर के स्थान पर देवालय, चैत्य , चेत्यवृक्ष का उल्लेख मिलता है। मंदिर की संरचना मानव शरीर के प्रस्तुत करती है, यहां जो आत्मा है वो भगवान है।
उत्तर भारत यानी नागर शैली में बने मंदिर खड़े मानव की रुप रेखा प्रस्तुत करते है वहीं दक्षिण भारत यानी द्राविड़ शैली में बने मंदिर सोये हुए मानव को प्रस्तुत करते है। उपरोक्त तथ्यों कि जानकारी का विश्लेषण करने के लिए आप श्री राम-कृष्ण कंगला की लिखी किताब Interpretation of Hindu Temple तथा Temple heritage of India को पढ़ सकते है।.श्री राम-कृष्ण कंगला  IITM Gwalior में सहायक प्राध्यापक रह चुके है , इसके साथ ही वे विशेषज्ञ Hindi Temple Architecture and sonography एवं लेखक है।.

नव मंदिर निर्माण के महत्वपूर्ण तथ्य 

1. हर मंदिर में सप्त सिंधु का स्थान होता है ,किले के सामान ही सप्त लोकसदन को भी माना जाता है अंतिम लोकस में भगवान होते है ,इन्हें विग्रह भी कहा जाता है। उदाहरण उड़ीसा का ओरछा चतुर्भुज मंदिर इसके साथ ही बुदेंला साम्राज्य द्वारा निर्मित लक्ष्मण मंदिर है।

2. मंदिर के शिखर पर एक कलश रहता है जो खोखला होता है जिसमें नैवेद्ययम य नवग्रह के रुप में पदार्थ रहता है। इसे मंदिर का बीज भी कहते है , इस कलश के ऊपर रखे पत्थर को बीज पूर्वक कहते है।
ठीक इसी प्रकार दूसरा कलश मंदिर के नीचे ,प्रधान मूर्ति के नीचे और शिखर कलश के ठीक नीचे रहता है । इसमें भी नवग्रह को रखा जाता है।

3. मंदिरों के अत्यधिक विश्लेषण के लिए हमें द्राविड शैली और नागर शैली को समझना होगा।
नागर शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के नगर शब्द से हुयी है नगर शब्द का अर्थ होता है शहर यानी नागर शब्द का अर्थ हुआ नगरवासी।. ठीक इसी प्रकार द्राविड शब्द को संस्कृत भाषा के त्रावीत शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है तीन सागरों का मिलन 1 अरब सागर 2 हिन्द महासागर 3.बंगाली की खाडी का सागर।
नागर शैली में बने मंदिरों में शिखर य टॅावर का निर्माण किया जाता है ,वहीं द्राविड शैली में बने मंदिरों का निर्माण पिरामिड की तरह किया जाता है।
नागर शैली में प्राक्रम य कन्पाउन्ड नहीं दिखता है वहीं,द्राविड शैली में प्राक्रम दिखता है।
नागर शैली में मिरु पर्वत की पहचान के लिए शिखरों के समूह बनाये जाते है वहीं, द्राविड शैली में मंदिर का निर्माण मिरु पर्वत पर चढ़ने के समान किया जाता है। मिरु पर्वत को ज्ञान का प्रतीक माना गया है।.

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