प्रस्तावना
प्रस्तुत लेख में हम भारत के कर्नाटक राज्य में पाये जाने वाले लालमिरी मंदिर तथा इसके निर्माण कर्ता राजा नरसिंह वर्मन द्वितीय के बारे में चर्चा करेंगे।. इसके साथ ही हम यह परिभाषित करने कि कोशिश करेंगे कि लालमिरी मंदिर में पाये जाने वाली कलाक्रती 695 ई0 के समय काल में हमारी वर्तमान तकनिकों को परिभाषित करती है।.इन सभी घटनाओं के साथ हि हम समय यात्रा के बारे में चर्चा करेंगे।.
चर्चा का विषय
वर्तमान समय में कर्नाटक के लालमिरी मंदिर में पत्थर की दिवार पर एक नकाशी उकेरी गई है जिसमें वर्तमान समय के कम्पयुटर,किबोर्ड को दर्शाया गया है।.इस मंदिर को 1400 साल पहले पल्लव वंश के राजा नरसिंह द्वितीय द्वारा बनवाया गया था। ऐसे में मंदिर में कम्पयूटर की नकाशी का चित्र होना लोगो को चकित करने के लिए काफी है कि 1400 साल पहले जब विद्युत बिजली की खोज भी नही कि गई थी तब बिजली से चलने वाले इस कम्प्यूटर उपकरण को यहां कैसे चित्रीत किया जा सकता है। हालांकि ASI यानि Archaeological Survey of India की रिपोर्ट आना अभी बाकि है। हो सकता है कि मंदिर में इस चित्र को तत्तकालीक समय में कुरेदा गया हो या 695 ई के समयकाल में, इस बात का निर्णय रिपोर्ट आने के बाद ही किया जा सकता है।.चित्र को देखने से ऐसा प्रतित होता है कि यह एक हाईटेक कंट्रोल रुम या किसी उन्नत अंतरिक्ष यान का एक सटीक चित्रण है।.
रहस्य और मान्यताएं
- कुछ लोगो का मानना है कि प्राचीन भारतीय ऋषि-मुनि भविष्यवाणी करने में सक्षम थे उन्होंने भविष्य में होने वाली तकनिकी उन्नति की कल्पना पहले हि कर ली थी।.इस नकाशी को उसी भविष्यवाणी का प्रमाण माना जा सकता है।.
- वर्तमान इतिहासकारों का अनुमान है कि हो सकता है अतीत में कोई बाहरी अंतरीक्ष यात्री धरती पर आया हो जिसे देखकर उसकी परिकल्पना करके इस चित्र को कुुरेदा गया हो।.
- यहि कुछ विद्वानों का मानना है कि यह एक मान्यता है कि यह चित्रण सिर्फ काल्पनिक था कालाकारों ने अपनी कल्पना शक्ति का प्रयोग करके इस आकृति का निर्माण किया हो।.
- कुछ लोगो का यह भी मानना है कि हो सकता है कि इस नकाशी को आधुनिक कलाकारों द्वार वर्तमान काल के किसी समय में कुरेदा गया हो।.
समय यात्रा
वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है कि समय यात्रा संभव है ऐसा आइंस्टीन के समीकरणों का प्रयोग करने से यह गणितीय प्रमाण प्रमाणित करते है कि "यदि लाईट स्पीड (प्रकाश 1 कि गति ) से यदि कोई व्यक्ति यात्रा करना संभव कर सकता है तो वह समय यात्रा कर सकता है।.हालांकि इस तकनिकी पर अभी भी जांच चल रही है लेकिन क्वांटन कम्प्युटिंग के तकनिकी विकास, क्वांटम भौतिकी (Quantum Physics) के गहन अध्ययन से भविष्य में यह संभव हो सकता है।.दूसरे शब्दों में यदि हम देंखे तो एक समय था जब लोग पैदल यात्रा करते थे मगर अब तकनिकी विकास के कारण हम परिवाहन का प्रयोग करते है जिससे हम एक निश्चत समय में एक स्थान से अपने गंतव्य स्थान पर यात्रा कर सकते है यानि जीस स्थान पर हमें दो घण्टे बाद बहुंचना था उस स्थान पर हम मात्र आधे घण्टे में पहुंच जा रहे है।.
यह समय यात्रा को समझने का एक सरल प्रमाण हो सकता है मगर यह एक उचित प्रमाण नही है।.विज्ञानिकों के मतानुसार समय-यात्रा से त्तातपर्य यह है कि भविष्य में होने वाली घटनाओं को पहले ही देख लेना,दुसरे शब्दों में अतित में घटित घटनाओं को दुबारा घटित होता देखना।.इसका सटिक उदाहरण हमारा लालमिरी के मंदिर की कम्प्युटर नकाशी हो सकती है।.इसके अलावा भविष्य में ऐसी बहुत सि घटनाओं के प्रमाण मिलें है जो समय यात्रा को प्रमाणित करते है।.
जो एच ब्रेनन नाम के लेखक अपनी किताब A new Perspective में स्काॅटलैण्ड के एक पायलट का जिक्र किया है जिसे 1935 में स्काॅटलैंड के एडिनबर्ग के एक एयरबेस का हाल जानने के लिए भेजा गया था।किताब के मुताबिक जब वे एयरबेस के उपर से गुजरे तो उन्होने देखा कि वो बंद पडा है उस पर घास उग गयी है और गाय,भैंस उस पर चर रही है।. ऐयरबेस किसी खंडहर से कम नही लग रहा था।.आगे बढ़ने के दौरान उन्हे खराब मौसम के कारण दुबरा उसी एयरबेस कि तरफ लौटना पड़ा।. ऐयरबेस कि तरफ दुबारा आने पर उन्हे एहसास हुआ कि अचानक धुप निकाल आयी है मौसम एकदम से साफ हो गया है इसके साथ ही ऐयर बेस पर काफी लोगो को चलते फिरते देखा गया,खाकी वर्दी के बजाय निली वर्दी मेें लोगो को देखा गया।. हवाई जहाज़ भी पिले कि जगह सिल्वर नजर आ रहे थे अतः विक्टर वहां से लौट आये लेकिन वे हैरान तब, हुये जब चार साल बाद उन्हे उसी स्थान पर भेजा गया और अपने साथ हुई घटना को दुबारा याद किया.
1988 में स्ट्रेंज मैगज़ीन द्वारा एक आर्टिकल पब्लिश किया गया था जिसमें पुराने जमाने कि एक नयी चमचमाती कार का जिक्र था।.कहानी 1969 में एलसी बैक और उसके साथी पर अधारित थी जिसमें सड़क पर अपनी कार में डार्विंग करते समय अचानक पुराने ज़माने कि नयी कार को देखा गया था जिसे एक महिला चला रही थी जिसके साथ उसकी बच्ची भी थी उन्होने 1940 के दशक के कपडे पहन रखे थे।. कार को पत्रिका के किरदारों द्वारा रुकवाने का प्रयास किया गया तो वो नही रुकी अंत में उन्होने कार के आगे ले जाकर अपनी कार को रोककर दुबारा कार का मुआयना करना चाहा मगर अपनी कार से उतरने के बाद उन्होंने देखा कि वह पुरानी कार गायब हो चुकी थी।.
1954 मे जापान के एयरपोर्ट पर एक शख्स आया जिसने अपने आप को Taured नाम के देश से आया हुआ बताया उसका पासपोर्ट भी सही था मगर उस समय काल के दौरान टाओरेड नाम का कोई देश ही नही था।. नक्शे को दिखाने पर उसने स्पेंन और फ्रांस के बिच की एक जगह बताई जिसे उस समयकाल के लोग प्रिंसीपिल्टी आफॅ एंडोरा कहते थे जिसे सुनकर उस नागरिक का दिमाग खराब हो गया कि आखिर उसके देश को सुरक्षा कर्मी किसी अन्य नाम से कैसे बुला रहे है।.अतः उसे नज़दीकी होटल के कमरे में कैदी बना कर रखा गया मगर बाहर खड़े पैहरेदारों को पता ही नही चला कि वो कमरे से गायब कैसे हो गया।.
नरसिंह वर्मन द्वितीय
कर्नाटक के लालमिरी मंदिर के निर्माता पल्लव वंश के राजा नरसिंह वर्मन द्वितीय थे जिन्हे हम राजमल्ल और राजसिंह के नाम से भी जानते है।.ये एक हिन्दु राजा थे इनके पिता परमेंश्वर वर्मन प्रथम थे। इनकी दो रानियां थी पहली रानी का नाम रंगपताका तथा दूसरी रानी का नाम लोकमादेवी था।.इन्होने 695ई0 से 728 ई0 तक शासन किया वे अपने समयकाल के प्राक्रमी हिन्दू राजा थे जिन्होने अपने साम्राज्य का विस्तार करने के साथ ही विभिन्न मंन्दिरो का निर्माण भी करवाया था। जिनमें से प्रमुख मंदिर निम्नवत है जैसे कर्नाटक का लालमिरी का मंदिर,शोर मंदिर परिसर,पनवलाई का तालागिरश्वर मंदिर,कांची का कैलासनाथर मंदिर,शोर मंदिर,मामल्लपुरम में ईश्वर और मुकुंद मंदिर इसके सात ही एक बौद्ध विहार के निर्माण का श्रेय इन्हे जाता है जिसे हम वर्तमान समय में चीन पैगोड़ा के नाम से भी जानते है।. इतिहासकारों के अनुसार नरसिंह वर्मन अपने पुर्वज महेंद्रवर्मन प्रथम और नरसिंह वर्मन द्वितीय के समान ही एक महान यौद्धा थे।.
विदेशी सम्बंध
695 के समयकाल में इनके वंश को एक प्रमुख शक्ति के रुप में मान्यता दि गई है इनके तांग चीन से घनिष्ठ सम्बंध थे.लक्ष्यद्वीप के द्वीपपालक्षम अभिलेख से यह पता चला है कि एक समय काल में राजा का प्रशासन लक्ष्यदीप पर था।.चीनी सम्राट जुआनजोंग के अनुरोध पर नरसिंहवर्मन द्वितीय ने तांग चीन को अपना दूतवास भेजा था। जिसका उल्लेख इतिहासकार नीलकण्ठ शास्त्री अपनी रचनाओं में करते है शास्त्री जी के अनुसार प्राचीन काल में चीन भारत का दूश्मन ना होकर के मित्र था और चीन का दूश्मन ता-चो यानि वर्तमान अरब का क्षेत्र तथा तोउपो यानि वर्तमान तिब्बत का क्षेत्र, उसके दुश्मन थे जिनकी शक्तियों को दबाने के लिए चीन के सम्राट के अनुरोध पर राजा ने 720 ई0 में दूतावास को चीन भेजा था।.इतिहासकार निलकंठ शास्त्री के अनुसार इस दूतावास का नेतृत्व बौद्ध भिक्षु बज्रबोधि ने किया था।.चीनी सम्राट ने दक्षिणी भारत के पल्लव वंश के राजा को दक्षिणी चीन के जनरल की उपाधि प्रदान करने के लिए राजदूत के माध्यम से शिला लेख भिजवाया जीस पर लिखा गया थाकि कोई-होआ-से जिसका अर्थ होता है कि पुण्य लौटाने का कारण बनना।.
साहित्यीक योगदान
राजा नरसिंह वर्मन कुशल नाटककार और कवि थे।.उन्होंने संस्कृत में कई रचनाएं कि कुटियाट्टम इसे नृत्य नाटक का सबसे प्राचीन रुप माना जाता है।.सस्कृत साहित्यकार दंडिन ने राजा के दरबार में कई वर्षों तक कार्य किया था।.
वास्तुकला संरक्षण
राजा ने अपने समय काल में अनेक मंदिरो का निर्माण करवाया जिनमें से कर्नाटक का लालमिरी मंदिर प्रमुख है,इसके साथ ही कांची पुरम का कैलासनाथ मंदिर,बैकुण्ठ पेरुमल मंदिर,महाबलीपुरमशेर मंदिर सहित कई अन्य मंदिरों का निर्माण करवाया।.इसके अलावा तालागिरीश्वर पनमलाई मंदिर और इरावतेश्वर मंदिर को बनवाने का श्रेय भी इन्ही को जाता है इनके समय काल की वास्तुकला उस समय काल में भी आने वाले य आज के भविष्य को परिभाषित करती है।.जिसका प्रमाण लालमिरी का मंदिर है जिसके बारे में आप उपर पढ़ चुके है।.
सोर्स -विकीपिडीया, news18 एवं अन्य रिसोर्स
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